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Showing posts from July, 2005

घडी इम्तिहान की

उस शाम को सोंचा था जब इस पल के बारे में, सोंचा था अभी दूर हैं घडियाँ मुकाम की. कब बीत गया वक्त कुछ ना खबर हुई, लगता है ऐसा जैसे वो कल ही कि शाम थी. लो...फिर आ गयी घडी इम्तिहान की. # नितिन

चोरी का डर ;-)

और भी चीजें बहुत सी लुट चुकी हैं दिल के साथ, ये बताया दोस्तों ने इश्क फरमाने के बाद, इसलिये कमरे की एक-एक चीज चेक करता हुँ मैं, इक तेरे आने के पहले, एक तेरे आने के बाद . (# SMS से) सुना है जब से, कि चोरी की उनकी आदत है, हमें हिफाजत-ए-सामां की सख्त दिक्कत है, हर वक्त गौर करे किसको इतनी फुरसत है, वो आए हमारे घर में खुदा की कुदरत है, कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है. ( # सुरेन्द्र मोहन पाठक के एक उपन्यास से)

मैं

क्यों मैं, क्या मैं, क्या मेरा मन ? यह प्रश्न उठाता हूँ, बस सोंचता जाता हूँ, इस गूढ पहेली में, ना बीत जाए जीवन. नींदो से जागता हूँ, खुद से मैं भागता हूँ, बस शून्य ताकता हूँ, मन करता है स्पन्दन. किसके लिये हूँ खुश मैं, छाती है क्यों उदासी, देखूं क्यूँ ख्वाब इतने, जब जिन्दगी जरा सी ? पाया या जो कि खोया, मन हँसा या कि रोया, अरमान जो संजोया, कारण न कुछ प्रयोजन. क्यों मैं, क्या मैं, क्या मेरा मन ? # नितिन

महिमा हिन्दी फिल्मोँ की

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यह तस्वीर अभी पिछ्ले महीने उडीसा मेँ अपने प्रोजेक्ट के दौरान ली थी.जिस गाँव मेँ मैँ गया था वो मुख्य सडक से काफी अन्दर था.करीब ४-५ किलोमीटर साइकिल चलाने के बाद हमेँ साइकिल भी छोडनी पडी और दो पहडियाँ(लगभग ३ किलोमीटर )पैदल चल कर मैँ गाँव मेँ पहुचा.१५-२० घरोँ का टोला,क़ोई पानी बिजली की सुविधा नही, सडक् नही,स्कूल नही,साल मे सिर्फ तीन चार महीने का अनाज होने लायक खेती और बाकी समय जंगल पर निर्भरता, ये सब तो वो बातेँ थी जिनकी मुझे पहले से आशा थी क्योकि सँसाधनो से भरपूर र्होने के बाद भी उडीसा मे आम जनता(ज्यदातर आदिवासी)के हाथ मे कुछ नही पहुचता ये बात मे पिछ्ले २० दिनोँ मे देख चुका था. लेकिन जिस चीज़ ने मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य चकित किय वो थे इस घर मेँ लगे हुए बालीवुड कलाकारोँ के चित्र. य़ह अलग बात है कि वो लोग इनमेँ से किसी का नाम नही जानते थे लेकिन फिर हिन्दी फिल्मोँ की पहुँच का अहसास तो इस बात से हो ही जाता है. एक और चीज है और वो है हिन्दी फिल्म संगीत. मै कही भी गया चाहे वो गाँव हो या शहर , बस हो य जीप , मैने हर जगह सिर्फ और सिर्फ हिन्दी गाने बजते सुने..कही भी उडिया या अन्य भाषा के गाने नही सुने.

स्वीकार

मैने, हर हाल मे जीवन को जिया है। जिस-जिस ने मुझको जो दिया, मृदु पुष्प भी, कटु शूल भी, मन से या फिर मन मार कर, स्वीकार किया है।

घर

मिले ज़िन्दगी मे चाहे ठोकरे कई, लम्बे हो अनजाने कितने सफर. दुनिया मे चाहे कही भी रहूँ, मन का एक कोना पुकारता है "घर". # नितिन

जिन्दगी

ऐ जिन्दगी तेरा शुक्रिया। इस अजनबी संसार में, दुश्मन भी दिया,हमदम भी दिया। # नितिन
हिन्दी ब्लोग लिखने का सन्कल्प करीब चार महीने पहले लिया था जब मुझे पता लगा था कि हिन्दी मे भी ब्लोग लिखे जा सकते है और मैने हिन्दी चिट्‍ठे पढने शुरु किये और तब से बस बाकी लोगो के ब्लोग पढ कर काम चला रहा था। वैसे अगर मुझे बोलने और लिखने दोनो के मामले मे हिन्दी और अन्ग्रेजी मे से किसी एक को चुनना हो तो मै हिन्दी को ही प्राथमिकता देता हू, पर यहा इन्‍टरनेट पर (या कहे कम्‍प्‍यूटर पर)हिन्दी टाइप करने मे बडी समस्या आती है और वैसे भी हम ठहरे पक्के आलसी सो अपने अन्ग्रेजी ब्लोग के करीब ६ महीने बाद यह हिन्दी ब्लोग शुरु हो रहा है..इन चार पँक्‍तियो के साथ... बहुत दिनो से सोच रहे लिखना हिन्दी ब्‍लोग , ठहरे पक्के आलसी, लगा नही सन्योग। लगा नही सन्योग आज शुभ दिन यह आया, "इन्‍द्रधनुषी" चिट्‍ठा यह अस्तित्व मे आया।