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Showing posts from August, 2005

पढने का शौक - भाग -१

यह संस्मरण पहले एक ही बैठक मे ही लिखने का विचार किया था...पर लिखने लगा तो लगा कि एक बैठक में तो मै यह सब बयाँ कर ही नही सकता...पहली वजह तो यह कि एक बार में इससे ज्यादा हिन्दी टाइप करने की क्षमता और धैर्य मुझमें है ही नही...और वजह(यनि बहाने)सोंचते सोंचते ध्यान आया कि हिन्दी ब्लाग जगत के बडे नडे सूरमाओं ने अपने कई चिट्ठे कई कई कडियों में लिखे है...तो सोंचा...कि क्यों न उन्ही के पदचिन्हों पर ही चला जाये...शायद हम भी "कहीं" पहुँच जायें. तो सबसे पहली बात तो यह कि यहाँ पढने से मतलब "पढाई" से कतई न लगाय जाये, ऐसा इल्जाम अपन को एकदम नाकाबिलेबर्दाश्त होगा...वो इसलिये क्योंकि उसका शौक अपन को कभी रहा ही नही. बचपन से पढाई से तल्लुक सिर्फ इतना, कि बस किसी तरह काम चल जाये.लेकिन पढाई के अलावा बाकी सब जो पढने का नशा है वो ऐसा चढा हुआ है कि छूटता ही नही, ना छोडने की इच्छा है और ना ही इसकी कोई उम्मीद्.पढने की यह आदत मेरे जीवन के शुरु से ही शुरु हुई यानि काफी छुटपन से..करीब पाँच छ साल कि उम्र से ..जब कि इतनी शिक्षा हमारी हो चुकी थी कि किताबों मे लिखे हुए शब्द आराम से पढ और समझ लेते थे

दोस्ती का दिन

आज अगस्त माह का पहला रविवार है याने फ्रेन्डशिप डे...या मित्रता दिवस... या दोस्ती का दिन. ये कविता अपने सभी दोस्तों के लिए..उनका अनमोल साथ मांगने के लिए . दोस्त...तुम साथ दोगे ना ? जीत में, हार में, प्रीत में, रार में, जीवन के त्यौहार में, तुम... साथ दोगे ना ? आशा में, निराशा में, प्रश्नों में, जिज्ञासा में, जीवन की परिभाषा में, तुम... साथ दोगे ना ? वाद या विवाद में, अनकहे संवाद में, जीवन के आल्हाद में, तुम... साथ दोगे ना ? रुके में, बहाव में, इच्छाओं के फैलाव में, जीवन के पडाव में, तुम... साथ दोगे ना ? हास में, परिहास में, बातों की मिठास में, जीने के प्रयास में, तुम... साथ दोगे ना ? अर्श में, फर्श में, अवनति-उत्कर्ष में, जीवन के संघर्ष में, तुम... साथ दोगे ना ? आज और कल में, कुटिया या महल में, जीवन के हर पल में, तुम... साथ दोगे ना ? # नितिन

केबीसी-२

अभी थोडी देर पहले कौन बनेगा करोड्पति-२ का पहला एपिसोड देखा..वही अमितभ बच्चन की अदाएं और निराले अन्दाज, कुछ अत्यंत मूर्खतपूर्ण तो कुछ ठीक य अच्छे प्रश्न और ढेर सारे पैसों की बरसात.. गौरतलब है कि इस धारावाहिक ने करीब पाँच साल पहले स्टर प्लस और अमितभ बच्चन के डूबते हुए कैरियर, दोनो को पटरी पर लाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभई थी..करोड्पति कितने बने ये तो पता नही पर स्टार प्लस भारतीय मध्यम वर्ग के ड्राइग रूम का हिस्सा बन गया..अमितभ बच्चन ने फिल्मों मे धमाकेदार वापसी की और आज की तरीख मे वे बालीवुड के तमाम युवा अभिनेताओं को जमकर टक्कर दे रहे है और अपनी "सरकार" चला रहे हैं... और बात केबीसी-२ की ...तो भैया अमित जी का जादू तो कहीं जाने से रहा ...पर अपना मानना है कि जो मजा "पहली बार" में आता/होता है वो फिर दोबारा नही आता..और कम से कम फिल्मों के स्वीक्वेल का अपना तजुर्बा तो यही कहता है...सीरियल का क्या होता है ये राम जी जानें....वैसे वो कह ही रहे हैं कि "Don't loose the hope is the moral of the story".....