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Showing posts from April, 2006

मिसाल

हरा भरा ठूंठ. ताज़िन्दग़ी ढोया हुआ, थोडा सच, थोडा झूठ. बोलता पानी. बरसों से चुप, खामोश जुबां की कहानी चूल्हे में राख. आक्रोशित मन की, बुझी हुई आग. टूटा फूटा सामान. बरसों से संजोये हुए, बिखरे हुए अरमान. तपती हुई रेत, अकाल की मार से, पिचका हुआ पेट. मिसालें हैं कई. कुछ कही, कुछ अनकही, कभी ग़लत, कभी सही. कुछ शब्द बन कर निकलीं, कुछ आँसू बन कर बही. थोडा बहुत कह दिया, काफी कुछ दिल में ही रही. # नितिन - २८ अप्रेल २००६

कैसा होगा मौसम...?

समझ नही आ रहा इसे खुश खबरी मानें या दुखखबरी, मौसम विभाग ने फरमाया है कि इस साल मानसून सामन्य से कम रहेगा... भई है तो दुख खबरी ही, क्योंकि अपने यहाँ में हिन्दुस्तान तो पूरा बाजार ही मानसून पे टिका हुआ है...तो फिर खुशखबरी क्यों...वो इसलिये,कि जरा बताइये पिछली बार कब ऐसा हुआ था कि मौसम वालों ने सटीक भविष्यवाणी की थी?अगर कहते हैं कि मौसम शुष्क रहेगा तो मतलब होता है कि छाता लेकर ही घर से निकलना...बारिश हो सकती है...और अगर बूंदाबांदी के आसार बताए, तो समझिये कि बिन्दास धूप निकलेगी...बिल्कुल बेफिक्र रहिये... एक बात और है...इनका सामान्यता का पैमाना भी थोडा टेढा होता है...अगर किसी एक भाग में १०० सेमी बरसात(याने बाढ) हुई और किसी एक में ७८ सेमी (याने कम) तो इनका औसत हो गया ८९ सेमी(जो कि सामन्य है)...तो फिर क्या फिकर है...? याने सामान्य से कम मानसून को अभी तो हमारा (Un)Common sense मान नही रहा है और फिर राम जी के आगे किसी की चली है भला......

एक अदद मकान

पिछले ८-१० दिन से नवाबों के शहर हैदराबाद में हूं...रोजी रोटी, याने नौकरी, घर से बहुत दूर खींच लायी है.नया शहर , नयी नौकरी और नये लोग...अभी हमारे सामने सबसे बडी समस्या है, नया घर ढूंढने की, फिलहाल एक होटल में रह रहा हूं पर ज्यादा दिन तो होटल में नही रह सकते ना..और कब तक अनिकेतन रहेंगे.. कल शनिवार, याने वीकेंड था, और पहला दिन, जब हम फ्री थे...तो निकल पडे फ्लेट/मकान ढूंढने... काफी धक्के खाये पर अभी कुछ मिला तो नही, पर कसम से...एक आध जगह तो क्या रोचक वाकयात हुए... एक जगह..To-Let का बोर्ड देख कर घंटी बजायी... एक छोटी लडकी ने, खिडकी में से ही पूंछा..."क्या है?" "जी वो मकान..." कुछ पूंछने भीतर गयी...फिर आयी, "हिन्दू, या मुस्लिम?" "जी हिन्दू" फिर कुछ पूंछने भीतर गयी...फिर आयी "वेज्ज, या नोन वेज्ज...?" मैं बोला...मै वेज्ज, मेरा दोस्त नोन वेज्ज अब तक थोडा गुस्सा आने लगा था, पर मकान तो चहिये था... वो लडकी फिर भीतर गयी, और इस बार एक बुजुर्ग महिला साथ आयी... "फेमिली, या बेच्चलर..?" "जी बेच्चलर.." "नही जी, हम तो सिर्फ फेमिली

बडे दिनों के बाद

काफी दिनों बाद यह लिख पा रहा हूँ...पिछले एक महीने से घर पर था...यानी internet और cyberspace से एकदम दूर... अभी बहुत देर से पुराने चिट्ठे पढने का प्रयास कर रहा हू...इतना कुछ लिखा गया है यहा पर कि कम से कम ३-४ दिन तो लगेंगे हि सब कुछ पढने में.. कल यहाँ चेन्नई में अपनी पहली नौकरी शुरू की...थोडे दिनों में काफी कुछ बदल जायेगा...IIFM पीछे छूट गया, दोस्त छूट गये..नये लोग नया काम कालेज की बेफिक्री के दिन तो बहुत ही याद आयेंगे... खैर फिर एक बार , नियमित रूप से लिखने की कोशिश करूंगा