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Showing posts from May, 2006

हैदराबाद हिंदी ब्लागर मीट...

यह कोई बहुत बडी और बहुत योजनाबद्ध ब्लागरमीट नही थी,वैसे भी हैदराबाद से हिंदी में लिखने वाले बहुत कम दिखाई देते हैं... तो हुआ यों कि हिंदी ब्लाग जगत में करीब ३ महीने पहले दस्तक देने वाले, और वर्तमान में काफी सक्रिय रूप से लिखने वाले (खासकर परिचर्चा में) सागर जी से करीब १५ दिन पहले जी-मेल पर बात हुई थी...उन्होने तत्काल ही घर आने का, उस दिन रात को साथ खाना खाने का और फिर रात को घर पर होने वाले जागरण में शामिल होने का निमंत्रण दे डाला था...पर उस समय नौकरी से फुरसत नही थी सो उनसे माफी मांग ली थी और पता ले लिया था...साथ ही यह भी कि अब किसी भी दिन घूमते-घामते आपके दर तक पहुंच जाऊंगा तो कल दोपहर में भोजन के बाद ...इसी तरह घूमते हुए मैने अपने आप को सिकंदराबाद जाने वाली बस में पाया, वेस्ट मारदपल्ली जाने के लिये, जहां इनका सायबर केफे है...बस से उतर कर करीब आधे घंटे घूमते भटकते हुए, लोगों से रास्ता पूंछते हुए आखिर हम जा ही पहुंचे 'मकडियों के जाले' पर (अजी Spider, the WEB, जो इनके केफे का नाम है) काफी गर्मजोशी से मिले..चाय पानी ठण्डा आदि कि पूंछताछ हुई, पानी मैने लिया पर चाय और ठंडे से हा

जो मैने देखा

अपनी पिछली पोस्ट में मैने मानव समाज में हो रहे परिवर्तन की गति पर चर्चा की थी... सौभाग्य से (या दुर्भाग्य से) मैं जिस काल खंड में बडा हुआ हूं उसमें ये परिवर्तन काफी तेजी से हो रहे हैं... जब थोडा समझने लगा..करीब १०-११ साल की उम्र से...तब भारत आर्थिक उदारीकरण के युग में प्रवेश करने वाला था...और देखते देखते १५-१६ सालों में कितना कुछ बदल गया.. आज वो कुछ चीजें जो मेरे साथ बडी हुई और बदलीं...(मेरी लम्बाई,चश्मे के नम्बर, और दाढी-मूंछों के अलावा :) ) लगभग सभी बातें भारतीय समाज से ताल्लुक रखती हैं....मेरे हमउम्र और भी लोगों ने इन्हे महसूस किया होगा मैने क्रिकेट को जुनून और सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान बनते देखा है मैने शाहरुख खान को 'सर्कस'से निकल कर बॉलीवुड का 'बादशाह'बनते देखा है मैने दूरदर्शन की साप्ताहिक फिल्म का बेसब्री से इंतजार किया है, और ५० चेनलों में भी कोई एक कार्यक्रम ठीक से ना देख पाने की बेबसी को भी महसूस किया है मैने अपने घर फोन लगाने के लिये STD Booths पर ४-४ घन्टे बिताये है (हमेशा लाइन खराब मिलती थी) और मोबाइल से सुदूर गावों से घर पे बात की है मैने Black &a

परिवर्तन

परिवर्तन ही सतत है...Only Change is Constant.. यह बात कई जगहों पर कही और सुनी जाती है और लगभग हर पीढी,देश और काल के परिपेक्ष्य में सटीक भी बैठती है...लेकिन जो चीज़ ध्यान देने वाली है वो है परिवर्तन की दर...The rate of Change...जिस गति से परिवर्तन हो रहे हैं, क्या मानव उसके लिये तैयार है? एल्विन टॉफ्लर अपनी पुस्तक त्रयी Future Shock, Power Shift और Third Wave में इस बात को बखूबी इंगित करते हैं... जरा सोंचिये...ज्यादा दूर न जाकर सिर्फ पिछले २ हज़ार सालों का इतिहास उठाते हैं...करीब १६०० इस्वी तक मानव समाज पूर्णतः कृषि आधारित था...अगले मात्र ३०० सालों में औद्यौगिक क्रांति ने पूरे विश्व में पैर पसार लिये. कृषि आधारित समाज को उद्योग आधरित समाज बनने में मात्र ३०० साल...?? अगर मानव उत्पत्ति का इतिहास देखा जाये,तो ३०० साल मानव जाति के तो संपूर्ण इतिहास के लिये एक पल के बराबर भी नहीं हैं... इसकी तुलना किजिये इस बात से,कि जब मानव अपने वर्तमान स्वरूप में आया (होमो सेपियन्स, जो सीधा चल सकते थे....सोंच सकते थे..आदि आदि)..तो उसे लाखो वर्ष खानाबदोश से कृषि आधारित समाज बनने में लगे...कृषि आधारित समाज भी

रफ्तार की गहराई

अभी कुछ दिन पहले इन्टरनेट पर हिन्दी के प्रचार प्रसार में आने वाली समस्याओं पर एक लेख पढा था, हिन्दी सर्च इंजन के बारे में भी वहाँ कुछ लिखा था, और रफ्तार के बारे में भी...रफ्तार के बारे में बहुत दिन पहले सुना था पर उसे आजमाया नही था...इस लेख को पढ कर सोंचा कि क्यों ना आजमाया जाये...पर नतीजा बडा कष्टप्रद निकला... सबसे पहले हमने हमारा नाम वहाँ डाल कर देखा , गूगल महोदय हमारे नाम को लेकर करीब ३०० परिणाम बताते हैं, जिनमे सबसे पहले हमारा ब्लोग आता है, रफ्तार की रफ्तार सिर्फ ४० तक ही पहुँच पाई :(...बहुत दुखः हुआ, फिर सोंचा कि हम तो आम जनता हैं, हमारा नाम इतना महत्वपूर्ण भी नही है, शायद रफ्तार ने शामिल करना ही उचित नही समझा हो, तो 'भारत' को लेकर यही प्रयोग आजमाया... भारत शब्द को लेकर रफ्तार कुछ १८००० परिणाम दिखाता है, यही शब्द जब मै गूगल महोदय के पास लेकर गया तो उन्होने ९,९२,००० परिणाम दिखाये ...याने ५० गुना फर्क !!! दिल तो बहुत दुखा, पर कुछ कर नही सकते थे...सोंचा के क्यों न थोडी समाज सेवा की जाये, मुख पृष्ठ पर नीचे एक लिंक थी, 'हिन्दी वेब साइट बताएं' ..हमने सोंचा कि अपना ब्लोग

अपने अपने फर्ज

विदेशों में स्वेच्छा से पैसा कमाने गये भारतीयों की सुरक्षा का जिम्मा सरकार ले या ना ले, इस पर काफी बहस चल रही है... नुक्ताचीनी में इस पर लेख लिखा गया, युगल ने अपने चिट्ठे में इस पर एक सवाल छोडा, और हिन्दिनी पर भी इस बारे में चर्चा हुई.. मैं कुछ प्रश्न उठाना चाहूंगा... जब कोई भारतीय(या अनिवासी भरतीय)विदेश नें जाकर नाम और शोहरत कमाता है, तो क्या हम अपने गाल बजाकर खुश नही होते? क्या हम बाहर जाकर बसे भारतीय से यह अपेक्षा नही करते कि वो भारत में निवेश करे, भारत कि उन्नति में योगदान दे...? क्यों हम बडे बडे सम्मेलन आयोजित करते हैं जिनमें बाहर जाकर बसे भारतीयों से देश की तरक्की में हाथ बंटाने की अपील की जाती है? अब अगर देश यह उम्मीद रखता है, कि देश का नागरिक(या अनिवासी नागरिक), देश के प्रति अपना फर्ज समझे, तो क्या फिर देश और सरकार का यह फर्ज नही है कि उन्ही नागरिकों की सुरक्षा और हिफाजत के लिये वो दुनिया की किसी भी ताकत टकरा जाये और इतना कडा और कूटनीतिक रुख अख्तियार करे कि आगे कोई इस तरह की हरकत करने की हिमाकत ना करे ? क्या हमारी आज की स्थिति पूर्व में की गयी कूटनीतिक भूलों का परिणाम नही है? अ