क्या हम लातों के भूत हैं?
अभी इंडिया टुडे के ताजा अंक में एक सर्वेक्षण के परिणाम देख रहा था. क़ौन सा पूर्व प्रधानमंत्री आज की समस्याओं से जूझने में सर्वाधिक योग्य है...?
?४१% मत इंदिरा जी को...एसे २-४ सर्वेक्षण पहले भी देख चुका हूं, इंदिरा गांधी को हमेशा सर्वाधिक मत प्राप्त होते हैं...
ऐसा क्यों है जबकि उनके साथ भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय यनि 'आपातकाल' जुडा हुआ है....., किंन्तु कई लोग तो आपातकाल को देश का सबसे अच्छा समय बताते है...वजह, बस-ट्रेन समय पर चलती थें, कोई रिश्वत लेने की हिम्मत नही कर सकता थ, तुरत फैसले होते थे..आदि आदि...
इसी प्रकार मैने कई बुजुर्गों के मुह से मैने अंग्रेज शासन की भी बहुत प्रशंसा सुनी है (आज के हालात से तुलना करते हुए)...सख्ती वहां भी बहुत थी..
क्या ये दोनों उद्धरण इस बात की ओर इंगित करते हैं कि हम लोग सिर्फ तभी सीधे चल सकते है जब हम पर डंडे की सख्ती की जाये...देसी भाषा में...क्या हम लातों के भूत हैं?...जब तक सजा होने का या पकडे जाने का डर नही हो, हम किसी भी प्रकार के नियम पालन करने को अपनी हेठी समझते हैं...क्या थोडी सी छूट मिलते ही हमारा दिमाग खराब हो जाता है?
ऊपर जिस सर्वेक्षण का उल्लेख मैने किया है, मेरे हिसाब से उसमें भाग लेने वाले अधिकतर लोग २५-४० की उम्र के बीच होते है...४० का व्यक्ति आपातकाल में १०-१२ वर्ष का रहा होगा...याने आज जो भारत की युवा पीढी है, उसने तो आपातकाल की स्थेति नही देखी (या महसूस नही किया), सिर्फ सुनी ही है...जैसे मैने सुनी है..लेकिन क्या आज भोगी हुई आजादी के बाद हम कल्पना कर सकते हैं कि सूचना पर प्रतिबंध लगा दिया जाये, य व्यवस्था के विरुद्ध मुह खोलते ही जेल मे डाल दिया जाये, या जबरदस्ती पकड कर नसबंदी कर दी जाये?
जी हाँ, ये सब भी होता था उस समय, और अगर ऐसा था तो हम कितने भाग्यशाली है, जो इतनी स्वच्छंद जिन्दगी जी रहे है?लेकिन क्या इस स्वच्छंदता के साथ हम न्याय कर पा रहे है? क्या हम इसके अधिकारी है? The way, we take things for granted, क्या हमें काफी कुछ सोंचने और समझने की जरूरत नही है?
?४१% मत इंदिरा जी को...एसे २-४ सर्वेक्षण पहले भी देख चुका हूं, इंदिरा गांधी को हमेशा सर्वाधिक मत प्राप्त होते हैं...
ऐसा क्यों है जबकि उनके साथ भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय यनि 'आपातकाल' जुडा हुआ है....., किंन्तु कई लोग तो आपातकाल को देश का सबसे अच्छा समय बताते है...वजह, बस-ट्रेन समय पर चलती थें, कोई रिश्वत लेने की हिम्मत नही कर सकता थ, तुरत फैसले होते थे..आदि आदि...
इसी प्रकार मैने कई बुजुर्गों के मुह से मैने अंग्रेज शासन की भी बहुत प्रशंसा सुनी है (आज के हालात से तुलना करते हुए)...सख्ती वहां भी बहुत थी..
क्या ये दोनों उद्धरण इस बात की ओर इंगित करते हैं कि हम लोग सिर्फ तभी सीधे चल सकते है जब हम पर डंडे की सख्ती की जाये...देसी भाषा में...क्या हम लातों के भूत हैं?...जब तक सजा होने का या पकडे जाने का डर नही हो, हम किसी भी प्रकार के नियम पालन करने को अपनी हेठी समझते हैं...क्या थोडी सी छूट मिलते ही हमारा दिमाग खराब हो जाता है?
ऊपर जिस सर्वेक्षण का उल्लेख मैने किया है, मेरे हिसाब से उसमें भाग लेने वाले अधिकतर लोग २५-४० की उम्र के बीच होते है...४० का व्यक्ति आपातकाल में १०-१२ वर्ष का रहा होगा...याने आज जो भारत की युवा पीढी है, उसने तो आपातकाल की स्थेति नही देखी (या महसूस नही किया), सिर्फ सुनी ही है...जैसे मैने सुनी है..लेकिन क्या आज भोगी हुई आजादी के बाद हम कल्पना कर सकते हैं कि सूचना पर प्रतिबंध लगा दिया जाये, य व्यवस्था के विरुद्ध मुह खोलते ही जेल मे डाल दिया जाये, या जबरदस्ती पकड कर नसबंदी कर दी जाये?
जी हाँ, ये सब भी होता था उस समय, और अगर ऐसा था तो हम कितने भाग्यशाली है, जो इतनी स्वच्छंद जिन्दगी जी रहे है?लेकिन क्या इस स्वच्छंदता के साथ हम न्याय कर पा रहे है? क्या हम इसके अधिकारी है? The way, we take things for granted, क्या हमें काफी कुछ सोंचने और समझने की जरूरत नही है?
Comments
ये सही है कि आपातकाल इंदिरा गांधी की जिन्दगी का काला अध्याय है लेकिन उनके अच्छे कामो की सूची ज्यादा लंबी है.
१.पोखरण विस्फोट
२.बांगलादेश का उदय
३.प्रिवीपर्श की समाप्ती
४.हरीत क्रातीं
५.बैंको का निजीकरण आज जरूर अप्रासांगीक लगे, लेकिन उस समय निहायत जरूरी था.
६.आपातकाल मे भी काफी अच्छे कार्य हुये. जैसे नसबंदी. कुछ चिजे ऐसी है जिन्हे कार्यान्वित करने तानाशाह चाहिये होता है और परिवार नियोजन उनमे से एक है
ये सूची अधुरी है
आशीष