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Showing posts from July, 2006

पता परिवर्तन सूचना

सभी खास-ओ-आम को सूचित किया जाता है कि अपनी दुकान नई जगह शिफ़्ट हो गई है...नया पता ये रहा.... सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी पर..:) ये दुकान भी चलती रहेगी..पर हो सकता है माल यहां तक पहुंचने में कभी कभी वक्त लग जाये... नारद जी को अलग से चिट्ठी लिख कर सूचित कर दिया गया है.. जब भी वक्त मिले...पधारियेगा...हम भी कोशिश करेंगे कि दुकान नियमित रूप से चलती/खुलती रहे और वहां माल की आपूर्ती बनी रहे.. सधन्यवाद

२१ वीं अनुगूंज - चुटकुले

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हर सफ़ल पुरुष के पीछे एक महिला का योगदान होता है हर असफ़ल पुरुष ले पीछे....कई महिलाओं का ***************************************************** अगर आपके पिताजी गरीब हैं तो ये आपकी बदकिस्मती है, अगर आपके ससुर गरीब हैं तो ये आपकी बेवकूफ़ी है. ***************************************************** आपका भविष्य आपके सपनों पर निर्भर करता है. ठीक है..मैं चला सोने. ***************************************************** खुदी को कर बुलन्द इतना और इतनी ऊंचाई पर पहुंच जा, कि खुदा खुद तुझ से पूंछे..... अबे गधे, नीचे कैसे उतरेगा... ****************************************************** खिडकी खुली, जुल्फ़ें बिखरी, दिल ने कहा दिलदार निकला. पर हाय रे मेरी फ़ूटी किस्मत, नहाया हुआ सरदार निकला. ****************************************************** कहते हैं, इश्क में नींद उड जाती है. कोई हमसे भी इश्क कर ले....... कम्बख्त नींद बहुत आती है ******************************************************* जिन्दगी में तुम बहुत आगे जाओगे. क्योंकि जहां भी तुम जाओगे,लोग कहेंगे... चल बे,आगे चल. ************************************

अपना भी एक साल पूरा !!!

अभी अभी ध्यान गया कि कल, ९ जुलाई २००६ को हमारे इस चिट्ठे ने भी अपनी उम्र का एक वर्ष पूरा कर लिया. जैसी कि रीत है, इस अवसर पर पुनरावलोकन करने की कोशिश की जाती है, तो पहली और महत्वपूर्ण बात तो ये कि इस एक वर्ष में काफ़ी कुछ सीखा. थोडा बहुत लिखा, और सबसे रसभरी बात, काफ़ी कुछ पढने को मिला. दूसरी बात ये कि चिट्ठों के माध्यम से काफ़ी लोगों को जाना, काफ़ी मित्र बने. सागर जी से कुछ ही दिन पहले सक्षात भी मिल लिये....सही मायनों में पहली बार महसूस किया कि अंतरजाल नये लोगों को मिलाता है.हमारे सहकर्मी हेमनाथन से भी हमारा पहला परिचय ब्लोग(अंग्रेजी वाले) के माध्यम से ही हुआ था. लिखने की शुरुआत हमने कुछ कविताओं से की थी, लेकिन धीरे धीरे अपनी बकर की भडास भी यहीं निकालने लगे. वैसे लिखने में हमने कोई तीर नही मारे, लेकिन एक बात है कि चिट्ठा लेखन से हमारे सोंचने के तरीके में बदलाव जरूर आया (वैसे सोंचते हम पहले भी थे)..पर अब एक आदत ये हो गई है कि किसी भी घटना-दुर्घटना को देखते हैं तो उसके २-३ पहलू देख लेते हैं..और ये जरूर सोंचते हैं कि क्या इस बात को अपने चिट्ठे पर डाला जा सकता है...यदि हां तो कैसे(ये अलग बात

किरकिट पर कुछ........

भारत ने वेस्टइंडीज में आखिरकार ३५ साल बाद सीरिज जीत ही ली....अनिल कुंबले ने २३ विकेट लेकर एक बार फ़िर साबित किया कि वे अभी भी भारतीय टीम की जान हैं...और द्रविड के बारे में तो कुछ कहने की जरूरत ही नही....a true leader....leading by example....मुझे आश्चर्य नही होगा अगर जल्द ही कोई Management School द्रविड को लेकर Leadership पर कोई Case Study बना दे... भारतीय टीम को शुभकामनाएं...वैसे सीरिज की विजय फ़ुटबाल के हो-हल्ले में दब कर रह गई....और इतनी चर्चा इसे शायद नही मिली जितनी अन्यथा मिलती... खैर, इस लेख को लिखने का मेरा म‍ंतव्य सिर्फ़ शुभकामना देना भर नही था....कुछ और बात थी जिसने मेरा ध्यान खींचा ....भारतीय टीम का विदेशी धरती पर जीत का अकाल वैसे तो हमेशा चर्चा का मुद्दा रहता था...लेकिन आज मैने रेडिफ़ पर अब तक की भारतीय जीतों(उपमहाद्वीप के बाहर) की सूची देखी.... अब तक भारत ने उपमहाद्वीप के बाहर १९ टेस्ट जीते हैं..... मौटे तौर पर अगर में इन विजयों को समय के हिसाब से बांटूं तो वो इस तरह की तस्वीर दिखाती है सन ६५ से ७५ (१० साल) - ७ टेस्ट (३७ %) सन ७५ से ८६ (११ साल) - ५ टेस्ट (२६