तुम और मैं

यह कविता मुझे बहुत दिन पहले mail forward मै प्राप्त हुई थी..मुझे बहुत पसंद आई और इसे पढ कर मैं खूब हँसा. क्योंकि तब मैं हिन्दी ब्लोग नही लिखता था, अतः मैने इसे अपने अन्ग्रेजी ब्लोग पर जस का तस चिपका दिया था...आज सोंचा के क्यों न यहा भी इसे चिपका ही दिया जाए.इसके रचियता का नाम मालूम नही है..अगर आप जानते हों तो कृपया बताएं..

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम MA फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ
तुम AC घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ
तुम नयी मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढाएंगे
तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएंगे

सब हड्डी पसली तोड मुझे वो भिजव देंगे जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये.
तुम दीवाली का बोनस हो, मै भूखों की हडताल प्रिये.
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनिअम का थाल प्रिये.
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये.
तुम हिरन चौकडी भरती हो, मै हू कछुए की चाल प्रिये.
तुम चंदन वन की लकडी हो, मैं हू बबूल की छाल प्रिये

मै पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

मै शनी देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो
मै तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ
तुम राज घाट का शांति मार्च, मै हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ
तुम हो पूनम का ताजमहल, मै काली गुफा अजन्ता की
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की

तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलमठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम नयी विदेशी मिक्सी हो, मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ
तुम ए. के. सैतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूँ
तुम चतुर राबडी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ
तुम मुक्त शेरनी जन्गल की, मै चिडिया घर का भालू हूँ
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मै वी पी सिंह सा खाली हूँ
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूँ

कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देना तुम 'बेल' प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितार होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम 'रेड लेबल' की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाडी हूँ
तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाडी हूँ
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा

तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूँ सागर तट का घोंघा

दस मंजिल से गिर जाऊंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लचारी हूं
तुम हो ममता जयललिता सी, मैं क्वाँरा अटल बिहारी हूँ
तुम तेन्दुलकर का शतक प्रिये, मैं फालो-आन की पारी हूँ
तुम Getz, Maruti, Santro हो, मैं Leyland की लारी हूं

मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ......

Comments

Anonymous said…
हा हा हा हा ... बहुत बढिया!!
RAJESH said…
नितिन जी , , जवाब नहीं……। कम से कम दस बारह बार पढ़ गया , पर हर बार , पढ़ने का मजा अलग है । इतनी जबरदस्त "स्ट्रेस-रिलीविंग" रचना को , तो , जितनी बार पढ़िए , हर बार , एक टिप्पणी लिखी जानी चाहिये। । रचयिता का पता चले , तो जरूर बतायें । बहरहाल , जब तक रचनाकार का पता नहीं चल जाता , आप ही , धन्यवाद स्वीकारें ।

-राजेश
Pratik Pandey said…
बहुत जी बढिया कविता है. पढ़ कर मज़ा आ गया. प्रस्‍तुतीकरण के लिये शुक्रिया.
Kaul said…
इतनी तारीफ सुन कर "प्रिये" सिर पर न चढ़ जाए, इस लिए हमारी ओर से फिल्मी गाने की एँडिंग के अन्दाज़ में :

तू है क्यों इतना फूल रही, ये तो मैं तुझ से खेल गया
मत सपने देख मिलन के तू, चूल्हे में ये मेल गया
तू शुक्र मना जो अब तक मैं तुझ जैसी लड़की झेल गया
प्यार मुहब्बत का क़िस्सा, समझो अब लेने तेल गया।

तू टेसन पे अब घंटी बजा, निकल गई है रेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार तो था इक खेल प्रिये।

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