...तो क्या

कल उषनीश ने एक शेर सुनाया था...क्या था वो तो मैं भूल गया पर अन्तिम दो शब्द याद रह गये जो थे...तो क्या..आज क्लास में बैठे बैठे इसी पर तुकबन्दी की...

तुम क्लास जरूर आ जाया करो,
यहाँ आकर फिर सो जाओ तो क्या?

प्रोफेसर जी कुछ पूँछ लें गर,
बतलाओ या ना बतलाओ तो क्या?

सबसे पीछे की कुर्सी भली,
वहाँ चुप बैठो या बतियाओ तो क्या?

जब क्लास में हों नौ कन्याएं,
बस देख उन्हें मुस्काओ तो क्या?

exam में जब कुछ लिख ना सको,
फिर इधर उधर तकियाओ तो क्या?

जी भर कर फिर फन्डे फेंको,
परिणाम देख गरियाओ तो क्या?

Comments

BAGLE
ACHCHHI SHAYAREE KI LEE TUNE. BADHIYA TUKBANDI.
MAST.
Anonymous said…
तुम्हारे दोस्त ने कहीं इन मे से कोई शेर तो नही सुनाया था -

कुछ दिन तो बसो मेरी आँखो‍ में
फ़िर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फ़िर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

इक आईना था सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

मै तन्हां था मै तन्हां हूं
तुम आओ तो क्या ना आओ तो क्या

जब हम ही ना महकें फ़िर साहिब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नही
बुझ जाओ तो क्या जल जाओ तो क्या
नितिन के शेर तथा स्वामी के सवासेर बहुत अच्छे लगे तो क्या!
Pratik Pandey said…
भई, मज़ा आ गया नितिन जी और स्‍वामी जी रचित 'तो क्‍या' पढ़ कर।
Nitin Bagla said…
बिल्कुल सही जवाब स्वामी जी..,यही पहला शेर तो सुनाया था उसने...

"कुछ दिन तो बसो मेरी आँखो‍ में
फ़िर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या"

पूरी गज़ल(यह गज़ल ही है ना?) लिख भेजने का शुक्रिया,वाकई बहुत सुन्दर बोल हैं

वैसे,क़्या यह आप ही की रचना है? अग़र नही तो क्या आप बता सकते हैं किसने लिखा है इन्हे..?
किसने लिखी है...

ये तो मुझे नहीं पता...
मगर यही गजल हमने "गुलाम अली जी" की आवाज में सुनी हुई है.

भैय्या,


मै पढता था, मैं पढता हूँ
पोस्ट ही पिछले साल का है तो क्या

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