किरकिट पर कुछ........

भारत ने वेस्टइंडीज में आखिरकार ३५ साल बाद सीरिज जीत ही ली....अनिल कुंबले ने २३ विकेट लेकर एक बार फ़िर साबित किया कि वे अभी भी भारतीय टीम की जान हैं...और द्रविड के बारे में तो कुछ कहने की जरूरत ही नही....a true leader....leading by example....मुझे आश्चर्य नही होगा अगर जल्द ही कोई Management School द्रविड को लेकर Leadership पर कोई Case Study बना दे...

भारतीय टीम को शुभकामनाएं...वैसे सीरिज की विजय फ़ुटबाल के हो-हल्ले में दब कर रह गई....और इतनी चर्चा इसे शायद नही मिली जितनी अन्यथा मिलती...

खैर, इस लेख को लिखने का मेरा म‍ंतव्य सिर्फ़ शुभकामना देना भर नही था....कुछ और बात थी जिसने मेरा ध्यान खींचा ....भारतीय टीम का विदेशी धरती पर जीत का अकाल वैसे तो हमेशा चर्चा का मुद्दा रहता था...लेकिन आज मैने रेडिफ़ पर अब तक की भारतीय जीतों(उपमहाद्वीप के बाहर) की सूची देखी....
अब तक भारत ने उपमहाद्वीप के बाहर १९ टेस्ट जीते हैं.....

मौटे तौर पर अगर में इन विजयों को समय के हिसाब से बांटूं तो वो इस तरह की तस्वीर दिखाती है

सन ६५ से ७५ (१० साल) - ७ टेस्ट (३७ %)
सन ७५ से ८६ (११ साल) - ५ टेस्ट (२६ %)
सन २००० से संप्रति (०६ साल) -७ टेस्ट (३७ %)

अब सिर्फ़ इस मोटे आंकडे को लेकर कुछ मुद्दे/सवाल/विचार.....

क्या यह माना जाए कि सन २००० के बाद भारतीय क्रिकेट की स्थिति मजबूत हुई है ?....गौर कीजिये कि इसी दौर में भारत ने आस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर हराया, विश्वकप फ़ाइनल मे‍ पहुंचे, जिम्बावे और वेस्टइंडीज में सीरिज जीती....
और हां एक आक्रामक कप्तान, सौरव गांगुली, विदेशी कोच (जिनका की वरिष्ठ भारतीय खिलाडी हमेशा विरोध करते थे) और कई नये व युवा खिलाडी....

दूसरी बात यह कि क्या कारण थे कि ८६ से २०००..करीब १५ साल जीत का अकाल रहा...ध्यान दें कि यही वह समय था, जब कि क्रिकेट ने भारत के कोने कोने में पैर पसारे....क्रिकेट धर्म बन गया...यह वह समय रहा जब क्रिकेट का जादू पूरे देश में सर चढ कर बोलने लगा...फ़िर ऐसा क्यों हुआ कि इसी काल में भारत उपमहाद्वीप के बाहर एक जीत को तरस गया....

कुछ कारण जो मेरी समझ में आते हैं...

क्रिकेट का जो जादू था, उसका कारण एक-दिनी क्रिकेट रहा..ना कि टेस्ट...इसी वजह से टेस्ट क्रिकेट हाशिये पर पहुंच गया....खिलाडियों के लिये भी, जनता के लिये भी और कर्ता-धर्ताओं के लिये भी...(यहां यह बात कहना चाहूंगा कि पिछले ८-१० साल में टेस्ट का रोमांच फ़िर पैदा हुआ है..श्रेय दूंगा स्टीव वा की आस्ट्रेलियाई टीम को...पोन्टिंग उसी परम्परा को आगे बढा रहे हैं...)

क्रिकेट में पैसे का बोलबाला हो गया...खिलाडियों के लिये प्राथमिकताएं खेल से हट कर विग्यापनों पर आ गई.....और खिलाडी Larger then Life हो गये....(इसी दौर में हमें सचिन तेंदुलकर मिले...पर हां, करीबन सन २००० के बाद से ही वे चोटों की वजह से मैदान के अंदर-बाहर होते रहे है)

जब क्रिकेट में पैसा आया...तो राजनीति भी घुस गई...राजनीति जहां घुस जाये वहां क्या होता है..उससे हर हिंदुस्तानी अच्छी तरह परिचित है....ऐसे लोग व्यवस्था संभाल रहे थे/हैं जिन्होने कभी स्कूल में भी बल्ला नही पकडा होगा....और हां..आरक्षण(कुछ ऐसा होता था शायद कि फ़लां क्षेत्र से इतने खिलाडी तो होने ही चाहिये...)..गनीमत है कि अभी तक आरक्षण के अन्य आधार क्रिकेटियों ने इजाद नही किये...

सट्टेबाजी को यहां लिखूं या नही..ये मैं निश्चित नही कर पा रहा..क्योंकि मेरे हिसाब में ये तो फ़टाफ़ट क्रिकेट में और ज्यादा थी/है(?)...

और कोई कारण आपकी नजर में आये तो बताइयेगा....

सन ८५ से पहले के हालात पर कुछ लिख नही रहा हूं..क्यो‍कि क्रिकेट का इतना इतिहास अभी तक मैने विस्तार में पढा नही है....८५ के बाद तो लगभग सब अपने सामने हुआ है :)...कोई रोशनी/प्रकाश डाल सकें तो खुशी होगी...

Comments

Hemu said…
नितिन अच्छा analysis है तुमहारे! यार मुझे इस श्रुन्खला मे भारत का performance बहुत अच्छा लगा दो बार जीतने के करीब पहुचं कर match draw हो गया था और finally match और श्रुन्खला जीत हि गया, काश भगवान करे विश्व कप २००७ को भी भारत ही जीते !

हेमु
घनघोर किरकटिया हो नितिन जी, राहुल द्रविड़ अनुकरणीय कप्तान हैं. उनके प्रदर्शन से दूसरों को प्रेरणा मिलती है. टीम पहले दो टेस्ट भी जीत जाती किंतु दुर्योग कहा जाए या पांचवे गेंदबाज़ की कमी. बहरहाल, ३५ सालों बाद हम वेस्ट इंडीज़ में बेस्ट इंडीज़ साबित हुए. बधाई आपको
बढ़िया लिखा!
रणवीर said…
भारतीय क्रिकेट टीम द्वारा टेस्ट श्रृंखला जीतने पर आपको भी बधाई नितिन भाई। भारतीय क्रिकेटरों की प्रतिभा तो रंग लाई ही, साथ में आपका विश्लेषण गज़ब का है। आप तो बिल्कुल गहराई तक ही घुस गए।
Nitin Bagla said…
हेमू..आमीन!
नीरज जी,अनूप जी, रणवीर...बधाई एवं धन्यवाद आपको भी...

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