यह कविता मुझे बहुत दिन पहले mail forward मै प्राप्त हुई थी..मुझे बहुत पसंद आई और इसे पढ कर मैं खूब हँसा. क्योंकि तब मैं हिन्दी ब्लोग नही लिखता था, अतः मैने इसे अपने अन्ग्रेजी ब्लोग पर जस का तस चिपका दिया था...आज सोंचा के क्यों न यहा भी इसे चिपका ही दिया जाए.इसके रचियता का नाम मालूम नही है..अगर आप जानते हों तो कृपया बताएं.. मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम MA फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ तुम AC घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ तुम नयी मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढाएंगे तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएंगे सब हड्डी पसली तोड मुझे वो भिजव देंगे जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये. तुम दीवाली का बोनस हो,
Comments
अच्छा लिखते हो भाई... बधाई.
अपने लेखन में जंगल के रंग भरो, एसा लेखन ज्यादा नहीं है इधर.
....जा, तेरे स्वप्न बडे हों.
तुम्हारा-
संजय विद्रोही
धन्यवाद, उत्साह्वर्धन के लिये.....
पता नही, आप को याद होगा या नही, मैं ietalwar में आपका छात्र रह चुका हूँ...फिर से सम्पर्क में आकर प्रसन्नता हुई..आशा है आगे भी सम्पर्क बन रहेगा....