स्वीकार

मैने,
हर हाल मे जीवन को जिया है।
जिस-जिस ने मुझको जो दिया,
मृदु पुष्प भी, कटु शूल भी,
मन से या फिर मन मार कर,
स्वीकार किया है।

Comments

Kalicharan said…
bahut badhiya likhe hain. Aage bhi likhte rahen. Marine drive per ghoom kar bhopal ke bare main bhi kuch likhiyega. Hum banajaro ko apne shehar se rubaru karwaein.
Nitin Bagla said…
कालीचरण जी,वैसे तो भोपाल घूमने का मौका कम ही मिलता है ज्यादा देखा नही है...पर प्रयास करूंगा कि कभी कुछ लिख सकूं.
नितिन,

अच्छा लिखते हो भाई... बधाई.
अपने लेखन में जंगल के रंग भरो, एसा लेखन ज्यादा नहीं है इधर.

....जा, तेरे स्वप्न बडे हों.

तुम्हारा-
संजय विद्रोही
Nitin Bagla said…
प्रिय संजय सर
धन्यवाद, उत्साह्वर्धन के लिये.....
पता नही, आप को याद होगा या नही, मैं ietalwar में आपका छात्र रह चुका हूँ...फिर से सम्पर्क में आकर प्रसन्नता हुई..आशा है आगे भी सम्पर्क बन रहेगा....

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