भारतीय व्यवसायिक ढाँचे (Indian Business Models)
अमरीका और अन्य विकसित देशों में रहने वाले साहबान तो 'वाल-मार्ट' एवं 'के-मार्ट' जैसे स्टोर्स से परिचित होंगे ही, जहाँ आपको एक ही छत के नीचे तमाम तरह की वस्तुएं उपलब्ध होती हैं...भारत में भी महानगरों में माल-संस्कृति धीरे धीरे अपने पैर पसार रही है और यहाँ धडल्ले से कई रिटेल-स्टोर्स खुल रहे हैं.लेकिन हम आपको दिखाते हैं अपने 'इंडिया' का एकदम देसी शोपिंग स्टोर.आप इसे देसी वाल-मार्ट भी कह सकते हैं.वैसे ज्यादा उचित यह कहना होगा कि वाल मार्ट इन देसी दुकानों का अमेरिकन संस्करण है क्योंकि इन दुकानों के मुकाबले इसकी अवधारणा एक्दम नई है, वाल-मार्ट तो करीब '६० के दशक में अस्तित्व में आये हैं जबकि ये दुकानें, भारतीय गाँवों में सदियों से चली आ रही हैं. एक बात और, कई मामलों में इनकी सेवाएं(services),काफी आगे हैं, मसलन, ग्राहक यहां से सिर्फ सामन ही नही खरीदते, वरन् यहाँ अनाज एवं अन्य 'जींस'बेचे जाने की सुविधा भी है, यानी किसान यहाँ अपनी फसल भी बेच सकता है, और हाँ, एक बात तो हम भूल ही गये, आपको यहाँ, वित्तीय सुविधाएं(Financial Services) भी उपलब्ध हैं , यानी यहाँ से आप ऋण भी ले सकते हैं(यह अलग बात है, कि ब्याज की दर काफी ज्यादा होगी).क़ुल मिला कर, इस प्रकार कि दुकाने आपको भारत के हर छोटे-बडे गाँव में मिल जायेंगी.सदियों से ये दुकाने भारतीय गाँवों की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहीं है...किसान अपनी जरूरत के समय यहीं से ऋण लेता, फसल आने पर यहीं उसे बेचता, मिले पैसों से कुछ ऋण चुकाता, अपनी जरूरत का सामन खरीदता और यह चक्र चलता रहता (हिन्दी फिल्मों में जालिम 'लाला' को तो आपने देखा ही होगा),किसानों के एकतरफा शोषण के आरोप भी इस तरह के उपक्रमों पर लगते रहे, लेकिन इस बात से नही नकारा जा सकता के ये 'संस्थान' भारत के गाँवों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं.
(-तीनों तस्वीरें, उदयपुर के पास एक गाँव से)
अब आपको इसी संदर्भ में 'माडर्न इंडिया' और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुडी एक बात बताते हैं, क्या आपको पता है, कि आइ.टी.सी.,अपने ई-चौपाल कार्यक्रम के माध्यम से ठीक इसी प्रकार का एक माडल लागू कर रही है, नही....?तो अब जान लीजिये.
अब आपको इसी संदर्भ में 'माडर्न इंडिया' और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से जुडी एक बात बताते हैं, क्या आपको पता है, कि आइ.टी.सी.,अपने ई-चौपाल कार्यक्रम के माध्यम से ठीक इसी प्रकार का एक माडल लागू कर रही है, नही....?तो अब जान लीजिये.
आइ.टी.सी. ने अपने ई-चौपाल कार्यक्रम के अंतर्गत देश में विभिन्न स्थानों पर(गावों में)इन्टरनेट से जुडे (VSAT Connection के माध्यम से), कम्प्यूटर रखे हैं ऐसी जगह को 'ई-चौपाल' बोला जाता है, यहाँ किसान अपने उत्पादों के विभिन्न मंडियों के भाव जान सकता है, और तय कर सकता है कि उसे माल कहाँ बेचना है, कब बेचना है...
अब इसके दूसरे चरण पर आइये, इस का अगला भाग है आइ.टी.सी का "चौपाल सागर", यह अभी कुछ ही स्थानों पर है(मैने भोपाल के पास, सिहोर में देखा है), यहां किसान अपने उत्पाद लाकर बेचता है, उस दिन के भावों की पूरी जानकारी, वो अपने ही गांव में ई-चौपाल के माध्यम से पहले ही ले सकता है, माल यहाँ आयेगा, तुलेगा और हाथों-हाथ भुगतान...
अब आइये तीसरे चरण पर, यहीं चौपाल सागर में एक शापिंग-माल भी होता है, जहां घर परिवार कि रोजमर्रा की जरूरतों से लेकर, कपडा, किराना, बर्तन और मोटरसाइकिल तक, एक छत के नीचे उपलब्ध है, यानी, माल बेचिये, पैसा पाइये, और फिर खरीदारी कीजिये...
यह माडल अभी प्रयोगात्मक रूप में कुछ ही जगहों पर लागू किया गया है, और यह कितना सफल होता है यह देखना बाकी है, किंतु, निश्चित रूप से भारतीय ग्रामीण बाजार्, कंपनियों की हिट लिस्ट में हैं और उसे भुनाने के लिये वे काफी प्रयास भी कर रहे हैं, कुछ आगे हैं तो कुछ पीछे...लेकिन मोटे तौर पर तो यह उसी ढाँचे पर आधारित है, जिसकी बात हमने शुरु में की थी, हाँ एक-दो बातें है, माप-तौल पूरा होता है, भाव ठीक मिलता है, और किसान वहाँ से कुछ भी खरीदने को बाध्य नही है...यह मान जा सकता है कि बदलाव की हवा है, कितनी तेज बहती है, यह अभी देखना है.
एक उदाहरण और आपको दे देता हूँ चलते चलते.य़ह जुडा है उन वित्तीय सुविधाओं से जिनकी बात मैने ऊपर की थी...इस ऋण सुविधा पर ध्यान आकर्षित हुआ है ICICI बैंक का. इस माडल में उनकी उत्सुकता की वजह है, यहां दिये जाने वाले ऋण की लगभग पूर्ण वापसी(Full recovery of loan).पैसा डूबने की दर यहाँ बहुत कम होती है और गिरवी वाले धंधे में भी NPAs(Non Performing Assets) काफी कम होते हैं, जिनसे कि बैंक सदा परेशान रहते हैं.अभी इस पर ज्यादा प्रगति तो नही हुई है, किंतु भविष्य में ऐसी संभावनाओं से इन्कार नही किया जा सकता कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक ऋण देने के लिये इस तरह की दुकानों को अपना माध्यम बनाएं, ताकि उन्हे loan recovery की समस्या से न जूझना पडे...
तो है ना ये देसी और माडर्न का अद्भुत घालमेल.........
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