यह कोई बहुत बडी और बहुत योजनाबद्ध ब्लागरमीट नही थी,वैसे भी हैदराबाद से हिंदी में लिखने वाले बहुत कम दिखाई देते हैं... तो हुआ यों कि हिंदी ब्लाग जगत में करीब ३ महीने पहले दस्तक देने वाले, और वर्तमान में काफी सक्रिय रूप से लिखने वाले (खासकर परिचर्चा में) सागर जी से करीब १५ दिन पहले जी-मेल पर बात हुई थी...उन्होने तत्काल ही घर आने का, उस दिन रात को साथ खाना खाने का और फिर रात को घर पर होने वाले जागरण में शामिल होने का निमंत्रण दे डाला था...पर उस समय नौकरी से फुरसत नही थी सो उनसे माफी मांग ली थी और पता ले लिया था...साथ ही यह भी कि अब किसी भी दिन घूमते-घामते आपके दर तक पहुंच जाऊंगा तो कल दोपहर में भोजन के बाद ...इसी तरह घूमते हुए मैने अपने आप को सिकंदराबाद जाने वाली बस में पाया, वेस्ट मारदपल्ली जाने के लिये, जहां इनका सायबर केफे है...बस से उतर कर करीब आधे घंटे घूमते भटकते हुए, लोगों से रास्ता पूंछते हुए आखिर हम जा ही पहुंचे 'मकडियों के जाले' पर (अजी Spider, the WEB, जो इनके केफे का नाम है) काफी गर्मजोशी से मिले..चाय पानी ठण्डा आदि कि पूंछताछ हुई, पानी मैने लिया पर चाय और ठंडे से हा...
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अब बड़े बुजुर्गो की झाड़ सुनो... "बबुआ तुम्हारा ध्यान कंही और रहता है आजकल, आज मोबाइल खोया है,कल घड़ी खो आओगे,परसों कुछ और। मोबाइल खोया तो खोया, जाने कम्प्यूटर मे क्या क्या खटर पटर करते रहते हो, उसको भी डब्बा बना दिया। अब जाओ इन्टरनैट कैफ़े, वंही से लिखो अपना ब्लाग शलाग"
रात को दो पैग लगाओ और सो जाओ। होना वही जो राम रच राखा ।
बुजुर्ग़ों की झाड सर माथे...वैसे हूं मैं बडा लापरवाह...बचपन से काफी चीजें(और कई बार पैसे भी) खोता आया हूं
कनिष्क जी...पैग तो हम लेते नही...लेग-पैग और सुट्टे से दूर रहने वाले इंसान हैं...कोई दूसरा उपाय?