लगता है, समय खराब चल रहा है...पहले मोबाइल खोया था, उसके झटके से उबर कर अब नया लेने का विचार कर रहा था, कि कल कम्प्यूटर का मदरबोर्ड "उड" गया...यानि दो-ढाई हजार का खर्च फिर सर पे...वारंटी भी दो महीने पहले निकल चुकी है...:(..सारा वित्तीय इंतजाम गडबड हो गया .
खैर, वापस IIFM पहुँच गये हैं, फिर वही पुरानी दिनचर्या और जिन्दगी...ऊपर से इस बार शेड्यूल बहुत 'टाइट' है...
खैर, वापस IIFM पहुँच गये हैं, फिर वही पुरानी दिनचर्या और जिन्दगी...ऊपर से इस बार शेड्यूल बहुत 'टाइट' है...
Comments
अब बड़े बुजुर्गो की झाड़ सुनो... "बबुआ तुम्हारा ध्यान कंही और रहता है आजकल, आज मोबाइल खोया है,कल घड़ी खो आओगे,परसों कुछ और। मोबाइल खोया तो खोया, जाने कम्प्यूटर मे क्या क्या खटर पटर करते रहते हो, उसको भी डब्बा बना दिया। अब जाओ इन्टरनैट कैफ़े, वंही से लिखो अपना ब्लाग शलाग"
रात को दो पैग लगाओ और सो जाओ। होना वही जो राम रच राखा ।
बुजुर्ग़ों की झाड सर माथे...वैसे हूं मैं बडा लापरवाह...बचपन से काफी चीजें(और कई बार पैसे भी) खोता आया हूं
कनिष्क जी...पैग तो हम लेते नही...लेग-पैग और सुट्टे से दूर रहने वाले इंसान हैं...कोई दूसरा उपाय?