अपने अपने फर्ज

विदेशों में स्वेच्छा से पैसा कमाने गये भारतीयों की सुरक्षा का जिम्मा सरकार ले या ना ले, इस पर काफी बहस चल रही है...नुक्ताचीनी में इस पर लेख लिखा गया, युगल ने अपने चिट्ठे में इस पर एक सवाल छोडा, और हिन्दिनी पर भी इस बारे में चर्चा हुई..

मैं कुछ प्रश्न उठाना चाहूंगा...

जब कोई भारतीय(या अनिवासी भरतीय)विदेश नें जाकर नाम और शोहरत कमाता है, तो क्या हम अपने गाल बजाकर खुश नही होते?

क्या हम बाहर जाकर बसे भारतीय से यह अपेक्षा नही करते कि वो भारत में निवेश करे, भारत कि उन्नति में योगदान दे...?

क्यों हम बडे बडे सम्मेलन आयोजित करते हैं जिनमें बाहर जाकर बसे भारतीयों से देश की तरक्की में हाथ बंटाने की अपील की जाती है?

अब अगर देश यह उम्मीद रखता है, कि देश का नागरिक(या अनिवासी नागरिक), देश के प्रति अपना फर्ज समझे, तो क्या फिर देश और सरकार का यह फर्ज नही है कि उन्ही नागरिकों की सुरक्षा और हिफाजत के लिये वो दुनिया की किसी भी ताकत टकरा जाये और इतना कडा और कूटनीतिक रुख अख्तियार करे कि आगे कोई इस तरह की हरकत करने की हिमाकत ना करे ?

क्या हमारी आज की स्थिति पूर्व में की गयी कूटनीतिक भूलों का परिणाम नही है? अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इन भूलों को दुहराएं और आने वाली पीढियों को भी परेशान करे, या फिर इनमें सुधार करने का प्रयत्न करें?

Comments

Anonymous said…
कड़े रुख के लिए ज़रूरी है कि विश्व में भारत का मुकाम ठोस हो और खेद है सब कुछ होते हुए भी यह अभी हमारे पास नहीं है। गल्ती करना हमारी आदत है और भुगतना आने वाली पीढ़ी की मज़बूरी ।
Yugal said…
नितिन लगता है हेदराबाद में मन लग गया है, कहीं नवाब बनकर तो नहीं लोटोगे।
Yugal said…
वेसे सिक्के का ये पहलु भी देखना चाहिये जैसा तुमने लिखा।

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