चोरी का डर ;-)

और भी चीजें बहुत सी लुट चुकी हैं दिल के साथ,
ये बताया दोस्तों ने इश्क फरमाने के बाद,
इसलिये कमरे की एक-एक चीज चेक करता हुँ मैं,
इक तेरे आने के पहले, एक तेरे आने के बाद .

(# SMS से)

सुना है जब से, कि चोरी की उनकी आदत है,
हमें हिफाजत-ए-सामां की सख्त दिक्कत है,
हर वक्त गौर करे किसको इतनी फुरसत है,
वो आए हमारे घर में खुदा की कुदरत है,
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है.

( # सुरेन्द्र मोहन पाठक के एक उपन्यास से)

Comments

Anonymous said…
नितिन भाई,

कभी कभी तो अपने विचार भी विचार लिख लिया करो, कब तक दुसरो को उद्ध्रित करते रहोगे,copy paste मारते रहोगे.

तुम्हारा एक शुभचिन्तक्
प्रबल प्रकाश मिश्रा,
मधूबनी, बिहार्
Nitin Bagla said…
प्रिय शुभचिन्तक प्रबल प्रकाश जी,
स्पष्ट कर दूं कि यह जरूरी नही होता कि चिट्ठे पर खुद का लिखा हुआ ही छापा जाये....ये तो अपनी पसन्द की बात है...जो अच्छा लगा, लिख दिया (संदर्भ सहित)...हाँ अगर किसी दूसरे के विचार अपने नाम से लिखूं तो आपकी आपत्त्ती जायज होती...

और रही बात "कभी तो अपने विचार लिखने की" तो अभी तक तो इस प्रविष्टी को छोड कर इस चिट्ठे पर सारे विचार मेरे ही हैं.और "ये" विचार भी मेरे विचारों से मेल खाते हैं...
भविष्य में भी अगर मुझे किसी और के विचार पसन्द आये (मसलन तुलसीदास जी,या महात्मा गाँधी या अपने लालू जी या कोई भी..)तो यहाँ इस चिट्ठे पर अवश्य स्थान पायेंगे ये मेरा आपसे वादा है..

टिप्पणी के लिये धन्यवाद...आगे भी अपनी शुभचिन्तओं से मार्गदर्शन करते रहियेगा

शुभचिन्ताभिलाषी

# नितिन बागला

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